भोपाल: व्यापम घोटाले की जांच के बाद सीबीआई ने डॉ. सुधीर शर्मा के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें उन्हें चार मामलों में आरोपी बनाया गया था। इसे चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में चार याचिकाएं दायर की गई थीं। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डबल बेंच ने याचिकाओं पर संयुक्त सुनवाई करते हुए चारों एफआईआर निरस्त करने के आदेश जारी किए हैं। फिलहाल विस्तृत आदेश का इंतजार है।

एसआईटी ने जांच में सुधीर शर्मा को पाया था दोषी:

दरअसल, व्यापम घोटाले की जांच के लिए गठित एसआईटी ने प्रारंभिक जांच में डॉ. सुधीर शर्मा को दोषी पाया था। इसके बाद उन्हें चार मामलों में दोषी पाते हुए उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया था। इसके बाद व्यापम घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी।

चार परीक्षाओं से जुड़े थे मामले:

व्यापम घोटाले के तहत 2011 से 2013 के बीच आयोजित विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं - संविदा शिक्षक वर्ग-2 (2011), उपनिरीक्षक भर्ती परीक्षा (2012), पुलिस आरक्षक परीक्षा (2012) और वनरक्षक परीक्षा (2013) में कथित अनियमितताओं के लिए सुधीर शर्मा के खिलाफ चार अलग-अलग मामले दर्ज किए गए थे।

दो साल जेल में रहे सुधीर शर्मा:

बता दें कि व्यापम घोटाले का खुलासा साल 2013 में हुआ था। आरोपी बनाए जाने के बाद खनन कारोबारी और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े सुधीर शर्मा ने जुलाई 2014 में भोपाल जिला न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया था। करीब दो साल जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। शर्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और विज्ञान भारती जैसे संगठनों से भी जुड़े रहे हैं।

सीबीआई को सौंपी गई थी जांच:

व्यापम घोटाले की प्रारंभिक जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) कर रही थी, लेकिन बढ़ते दबाव और राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा उठने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। शर्मा पर परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी की नियुक्ति में संस्तुति करने और परीक्षा प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का भी आरोप था, लेकिन कोर्ट ने पाया कि इन आरोपों के समर्थन में कोई पुख्ता सबूत नहीं है।

इन मामलों में बनाया गया था आरोपी:

सीबीआई ने उनके खिलाफ सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा 2012, पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा 2012, संविदा शाला शिक्षक भर्ती वर्ग 2 परीक्षा 2011 और वनरक्षक भर्ती परीक्षा 2013 में हुई धांधली में आरोपी बनाते हुए कोर्ट में चालान पेश किया था। इसे चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी।

याचिकाकर्ता के वकील की दलील:

याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता कपिल शर्मा ने खंडपीठ को बताया कि याचिकाकर्ता का चारों मामलों में किसी भी व्यक्ति से कोई वित्तीय लेन-देन नहीं हुआ है। सीबीआई की चार्जशीट और एक्सेल शीट में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता ने कोई वित्तीय लाभ अर्जित किया है। दर्ज मामले कुछ गवाहों के ज्ञापन के आधार पर दर्ज किए गए हैं। दर्ज एफआईआर रद्द करने योग्य है क्योंकि वित्तीय लाभ अर्जित करने का कोई सबूत नहीं है। मामले में सबूतों के अभाव में डिवीजन बेंच ने सभी चार मामलों में एफआईआर रद्द करने के आदेश जारी किए हैं।